Monday 31 August 2015

नागफणी और मैं





                                    





समय की रेत में तपती 
नागफणी और मैं 
क्या अभयदान के जैसा जीवनदान होगा 
हम दोनों का

पीड़ा की अनेक गाथाएं रची जा रही हैं  
मेघों की पहली बूंद से फूटती तुम  
दर्द की कविता सी फलती मैं

कांटों का नुकीलापन
अंतर्द्वंद्वों का संताप  
बेदनाओं की सीमा से परे

कठोर दर कठोर हुई आदतन 

4 comments:

  1. भावपूर्ण रचना ..

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  2. मुझे बहुत पसंद हैं रचना .. सुन्दर हैं

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  3. जय मां हाटेशवरी...
    आप ने लिखा...
    कुठ लोगों ने ही पढ़ा...
    हमारा प्रयास है कि इसे सभी पढ़े...
    इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना....
    दिनांक 28/10/2015 को रचना के महत्वपूर्ण अंश के साथ....
    पांच लिंकों का आनंद पर लिंक की जा रही है...
    इस हलचल में आप भी सादर आमंत्रित हैं...
    टिप्पणियों के माध्यम से आप के सुझावों का स्वागत है....
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
    कुलदीप ठाकुर...

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  4. जीवन सरल नहीं काँटों की राह से कमतर नहीं ..
    बहुत सुन्दर

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मैं देख रही थी...

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