बड़ा विचित्र है नारी मन
त्रिया चरित्र ये नारी मन
खुद से खुद को छिपाती
कितने राज बताती
अपने तन को सजाती
सब साज सिंगार रचाती
हया से घिर घिर जाती
जब देखती दर्पण
प्रियतम से रूठ कर
मोतियों सी टूट कर
फर्श पर बिखर गयी जो
अरमान अपने समेटे
अस्तित्व की चादर में लपेटे
सम्मुख सर्वस्व किया अर्पण
ममता की छावं में
एक छोटे से गावं में
चांदनी के पालने में
लाडले को सुलाती
परियों की कहानियां
मीठी लोरियां सुनाती
नींद को देती आमंत्रण
खनकते हैं हाथ जिन चूड़ियों से
तलवारें पकड़ना भी जान गए
एक फूल से वो अंगार बनी
लोहा सब उसका मान गए
न रखती कोई भ्रम
दर्शाती अपना पराक्रम
एक भोली सी सूरत
बनी त्याग की मूरत
समझती सबकी जरूरत
अपने सपनों का घोंटती गला
इच्छाओं का करती दमन
बहती अविरल धारा सी
निर्मल गंगा सी है पावन
मन उसका छोटा सा
ओस की बूँद जितना
समाई है जिसमें सृष्टि
उसमें ओज है इतना
अदभुत है उसका रूप
दुर्लभ शक्तियों का है संगम
बड़ा विचित्र है नारी मन
आपकी यह रचना कल मंगलवार (02-07-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
ReplyDeleteवाह बहुत खूब
ReplyDeleteएक प्रतीक में आपने पूरा नारी चरित्र सामने रख दिया.
ReplyDeleteबखूबी नारी का चित्रण .....बहुत खूब...
ReplyDeleteबखूबी नारी का चित्रण .वाह.सुन्दर प्रभावशाली ,भावपूर्ण ,बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteशुक्रिया... मदन मोहन जी
Deleteदुर्लभ शक्तियों का है संगम
ReplyDeleteबड़ा विचित्र है नारी मन
....नारी मन का बहुत प्रभावी चित्रण....
वाकई सुंदर है यह अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteबधाई !
Behatarin Kavita se hamen avagat karane ke liye bahut bahut dhanyawad ManjushaJI..
ReplyDeleteनारी के मन को नारी के माध्यम से प्रकट किया आपने, जिसमें उसके मन के अनुभव सरल शब्दों में कविता रुप में टपक रहे हैं।
ReplyDeleteअच्छा लिखा है...बधाई...
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteनारी शक्ति और नारी मन की भावना को बाखूबी लिखा है ...
ReplyDeleteनारी मन की भावना को बाखूबी लिखा है ...
ReplyDeleteराज चौहान
http://rajkumarchuhan.blogspot.in/
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteनवीनतम पोस्ट मिट्टी का खिलौना !
नई पोस्ट साधू या शैतान
मञ्जूषा जी आपकी इस रचना को हमारा हरयाणा ब्लॉग पर साँझा किया है
ReplyDeleteसंजय भास्कर
http://bloggersofharyana.blogspot.in