"डाल से गिरा पतझड़"
तुम आओ एक बार
दे जाओ मुझे
मुट्ठी भर आकाश
अदृश्य स्वपन
प्रेम चिन्ह
अमर साहित्य
नरगिसी फूल
ताकि देख सकूं एक उजाले
को बढ़ते अपनी ओर
देख सकूं भविष्य की धरा पर
पहले बसंत को
गूँथ सकूं एक साथ कई प्रेम लताएं
ताकि रच सकूं कुंठित मन की धरातल पर
कालजयी रचनाएँ जो अमिट होंगी
शताब्दियों का सूर्य भी इसकी चमक
को फीका नहीं कर पायेगा
बिखेर सकूं अपने निर्जन वन में सुगंध
जो मनभावन होगी
तब तुम भी जान सकोगे
हवा के हलके स्पर्श को
चिरागों की उदासी को
सागर की गहराई को
बारिश में बनते इन्द्रधनुष को
एक व्यथित रात को
हम जब भी देखेगें
देखेंगे डाल से गिरा पतझड़
हाथों की लकीरों में
कुछ पुराने जख्म
एक सिली हुई सुबह में
सिरहाने रखे स्वपन भी
सिल हुए होंगे
"जाने तुम क्या खोजते हो"
जाने तुम क्या खोजते हो
अथाह समंदर की गहराइयों
से भी गहरे
कितनी तहों में छुपे हैं वो राज
जिनके नीचे मैं दब रही हूँ
मुमकिन है कि तुम्हें पा न सकूं
फिर भी घेरती हैं मुझे कितनी बातें
स्याह घनेरी ये अँधेरी रातें
तुम कदम न बढ़ाओ परवाह
नहीं मुझे
मेरी तरफ न आओ कोई चाह
नहीं मुझे
बस इतना जानती हूँ
दिल का कहा मानती हूँ
हर क्षण तुम्हें मेरे और करीब लाता है
और करीब बेहद करीब
इतना कि तुम्हारी तेज धड़कनों
को महसूस करती हूँ
फिर भी एक हाथ बढ़ाने में
देखो मैं कितना डरती हूँ
तनिक संदेह सा प्रतीत होता है
मुझे अपने ही प्रेम पर
तुम्हें पा लिया तो ऐसा न हो
मैं भी खोजती रह जाऊं तुम्हें
इस समंदर की गहराइयों में
जिसमें तुम भी कुछ खोजते हो
"नीला समंदर"
लो समा गयी पन्नों में दास्तां अपनी
एक इशारे पर दूर तक चल कर गयी
कहानियां अपनी
एक बुलबुला था जो हवा में हुआ फितूर
एक रंग था जज्वा था था एक गुरूर
पर्दाफाश होगा हर राज का पर होगा जरूर
गहरे जख्मों पर अब हमें नमक है मंजूर
बेदखल हुए हम हर राह से जो जिंदगी
तक जाती थी
और जिंदगी थी जो मुड़ मुड़ कर मौत
के साये तले जीने चली आती थी
अभी आसमान की दहलीज पर पावं
रखा ही था
कि जमीं ने किनारा कर लिया
आँख मिचौली खेलते सतरंगी सपनों
की जगह
आँखों को अश्कों ने भर लिया
दूर निकल आये इस तरह की लौटना
बाकि नहीं रह गया
वो नीला समंदर ही था जो रेत के
उस महल को संग लिए बह गया
"जिंदगी का दरख़्त"
कितनी गिरहें खोली हमने
अधजगे कभी पलकें मूंद कर
जिंदगी का कोई सिर हाथ न
आया
हौसले पस्त हुए मन के
सिल गए होंठ वक्त के
लफ्जों को भी हमने खामोश
पाया
रात के पहलु में ढलती सांझ को
देखा एक मायूस सी मुस्कराहट
लिए
हम भी बैठे थे चिरागों को
हाथों में ले लौ में कंपकंपाहट
लिए
सुलगते थे सितारे आसमां में
चांदनी भी थी जल रही
हैरां हैरां ख्वाब थे सारे
अधूरी ख्वाहिशें थी पल रही
ख़ामोशी के इस मौहौल में
बेरंग थे सारे जज्बात
कुछ तहें खुल रही थी
सिलवटों से भरे थे लिबास
जिंदगी के इस दरख़्त पर
न पत्ता न मौसम सब सूना
अपने ही साये तले ये सूनापन
बढ़ता जाता कई गुना
"अहसासों से भरे मोती"
तुम उस तरफ हो
और मैं इस तरफ हूं
बीच में बिखरे पड़े हैं एहसासों से
भरे शब्दों के मोती
बड़े प्यार से जब मैंने इन्हें छुआ
तो सहसा लगा
तुम्हारा स्पर्श प्राप्त कर लिया
सिहर गयी हूँ मैं ऊपर से नीचे तक
धीरे से कानों के पास जो ले गयी
लगा तुमने हौले से कुछ कहा
सुचकुचाते आंखों से जो लगाया
महसूस ये हुआ कि तुम्हें अभी अभी देखा
इन्हीं मोतियों को बड़े प्रेम से
अपने अधरों से चूमते हुए
एक पल में पूरी देह रोमांचित हो उठी है
one of the best poems I ever read...
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