हमें नहीं आता हाथ पकड़ना
साथ बैठना
रास्ता दिखाना
किसी के आंसू पौंछना
जब हो रही हो कठोर दर कठोर जिंदगी
पार कर रहे पहाड़ जैसे अनुभव
पराधीनता से लैस बर्चस्व
दरारों के जैसे प्रयास
सूख रहें हो जलप्रपात
अपनी ही मिटटी अपने हाथों से छूटती जा रही हो
और छूट रहे हों शरीर से प्राण
तब अटल समाधान हो सकता था
नवनिर्मित किया जा सकता था विश्वास
दे सकते थे अपनापन
दूर हो सकता था अंधकार
लौट सकती थी सुबह
और उजली हो सकती थी चांदनी
मगर किताबी बातों को परे रख
क्षण भर को आये स्वार्थ को दूर कर
हम नहीं जुटा सके हौसला
ना कर सके सामने से मदद
न जोड़ सके उसकी हड्डियां
न ही फूंक सके उसमें प्राण
हमें आता है
पीठ पीछे ढोंग करना
मगरमच्छ के आंसू बहाना
दया दिखाना
ग्लानि भाव लिए
अपराध बोध से ग्रस्त होना
हमें नहीं आता
कठिनतम समय में किसी से प्रेम करना
जब जागो तभी सवेरा..आगे भी आने वाले हैं ऐसे ही क्षण.. हम इस बार खरे उतरेंगे..प्रेम करेंगे कठिनतम समय में भी क्यों कि उसके लिए सीख लिया है हमने सरलतम समय में प्रेम करना और संग-संग मुस्कुराना..
ReplyDeleteSo nicely expressed ....
ReplyDeleteSo nicely expressed ....
ReplyDeleteबहुत ही शानदार........दिल को छूती पंक्तियाँ ।
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