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मैं देख रही थी...
मैं देख रही थी गहरी घाटियां सुन्दर झरने फल फूल ताला...
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म र्यादा के वृत्त में खड़ा कर औरत सदियों से जिंदगी को जबरन ढोती आज की सीता है तुमसे पूछ रही क्यों ...
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दिन जलता है और रात आहें भरती है मालूम भी हो कि जिंदगी किस वक्त जीनी है थोड़ा थोड़ा ही सही आंगन का दरख़्...