Friday 7 June 2013

"कृपया कूड़ा मुझे दें "


उसका रुदन जो किलकारी बन कर गूंजा ,
सारा गाँव देखने पंहुचा ,
वो है एक नन्ही कली,
उसकी आँखों में मासूमियत पली ,
छोड़ दूसरे जहाँ को इस जहाँ में आई  है,
संग अपने परियों की कहानियां लाई है,
वो लगती कितनी प्यारी है ,
वो तो एक राजकुमारी है ,
ये एहसास उसे हुआ ही था,
अभी माँ के स्पर्श ने छुआ ही था,
ये  देख बाप को कोई हर्ष हुआ न था,
त्योरियां सबकी  चढ़ने लगी ,
कानों में फुसफुसाहट बढ़ने लगी,
जो उसके अपने थे हुए वो बेगाने,
जब सबने कसे ताने
कहाँ से आ गयी मनहूस न जाने ,
अब बाप तो जीवन भर इसका रोएगा ,
बेटी तो बोझ है कैसे ढोएगा,
दाई  हाय दईया  कहती निकल गयी ,
खुशियाँ सबकी मातम में बदल गयी ,
कुछ वोह बूझ रहा था ,
रास्ता कोई सूझ रहा था,
आधी रात को कम्बल उसने लपेटा,
बेदर्द हाथों से बोझ को समेटा,
कदमों की टाप में अभी भी वो सो रही थी,
देख उसको सूनी सड़क भी रो रही थी ,
क्या सोच वो उसके घर आयी थी ,
जहाँ बाप की बाहें उसके लिए परायी थी ,
कुछ जरा दूर जाकर असमंजस में  वो रुका,
"कृपया कूड़ा मुझे दें "उस पर था लिखा ,
कुछ चूहे जो वहां खटर पटर कर रहे थे,
सन्न उस पापी का पाप देख सोच  रहे थे,
हे ईश्वर तू ही देख किस कदर इंसान हो गया ,
जिंदगी को कचरे पर फेंका वो इतना हैवान  हो गया |

6 comments:

  1. Replies
    1. शुक्रिया, लेखन के क्षेत्र में मेरा ये पहला कदम है कोशिश यही रहेगी
      हर कसौटी पर खरा उतर पाऊँ |

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  2. हृदयविदारक - मर्मस्पर्शी रचना

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  3. हिन्दी ब्लॉगजगत के स्नेही परिवार में इस नये ब्लॉग का और आपका मैं संजय भास्कर हार्दिक स्वागत करता हूँ.


    संजय भास्‍कर
    शब्दों की मुस्कुराहट
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

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  4. संवेदना से भरपूर रचना के साथ आपने इस क्षेत्र में कदम बढाया है, स्वागत है.

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  5. बहुत सुंदर भाव, और शब्दों का चयन , शुभकामनाये , यहाँ भी पधारे

    http://shoryamalik.blogspot.in/2013/04/blog-post_5919.html

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