महरूम न कर गम से हमें ,
बस इतनी सी शिकायत है,
जैसे हवा में घुलती है खुशबू,
तमाम उमर यूँ ही गुजर जाने दे |
तेरे प्यार का मरहम ,
न झेल पाएगें हम,
बरसता है सावन जैसे ,
इन आँखों को भी भीग जाने दे |
आखिरी मोड़ पर जो आ खड़ी हुई ,
जिंदगी इक सवाल ही रही,
लो थम गयी है रात ,
अब इन साँसों को भी थम जाने दे |
तेरे दर से और कहीं ,
क्या ले जाएँ हम,
अरमानों का था जो आइना,
उसको भी टूट जाने दे |
कदम खुदबखुद रुक गए,
वो राह कहीं खो गयी ,
था सफ़र जिसका बाकी ,
उस मंजिल को अब छूट जाने दे |
सार्थक ब्लॉग तथा सुंदर रचनाएं, बधाई और शुभकामनाएं
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत आभार ब्यक्त करती हूँ कि आपने मेरे लेखन को इस काबिल समझा, आशा करती हूँ आगे भी आप मेरा हौसला यूँ ही बढ़ाएगें....
Deleteमंजूषा जी ..एक अद्भुत समपर्ण की तरफ इशारा करती शानदार रचना के लिए हार्दिक बधाई ..सादर
ReplyDeleteआपकी दिल से शुक्रिया अदा करती हूँ , कि आपने मुझे इस काबिल समझा
Deleteसुन्दर भावों को बखूबी शब्द जिस खूबसूरती से तराशा है। काबिले तारीफ है। मंजूषा जी
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