अब ये मौसम ये बहार जाने को है|
पतियों की सुर्ख लाली करती है इशारा,
पानी की लहरें भी करती है किनारा,
अब वो समंदर सूख जाने को है|
चढ़ते सूरज की तपती जवानी,
कहती है दिन भर की कहानी,
अब वो शाम ढलने को है|
वक्त कहीं थम कर रह गया,
हवा का झोंका कानों में कुछ कह गया,
अब वो बादल छाने को है|
दूर होते दरख़्त के वो साए,
जिन रास्तो पर हमें छोड़ आये,
अब वो सफ़र छूटने को है|
हाथ की लकीरों का वो दरकना,
जिंदगी का धीरे से सरकना,
अब वो सांस टूटने को है|
धुंधली हुई जिनकी रौशनी,
बोझिल हुई वो बूढी आँखें,
अब गहरी नींद सोने को है ..
behtareen abhivyakti..
ReplyDeleteshandaar rachna...
अब वो सांस टूटने को है|
धुंधली हुई जिनकी रौशनी,
बोझिल हुई वो बूढी आँखें,
अब गहरी नींद सोने को है .
संवेदना से परिपूर्ण - प्रशंसनीय प्रस्तुति
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी रचना , स्म्बेदना से परि पूर्ण ..आप मेरे ब्लॉग से जुडी इसके लिए तहे दिल शुक्रिया ..सादर बधायी के साथ ..जरूरी नहीं है पर मेरा निवेदन है आप वर्ड वेरिफिकेशन यदि हटा देंगी तो कमेन्ट करने में आसानी होती है
ReplyDeleteऐसी कवितायें रोज रोज पढने को नहीं मिलती...इतनी भावपूर्ण कवितायें लिखने के लिए आप को बधाई...शब्द शब्द दिल में उतर गयी.
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