तुम बैठे हो तनहा ,
देखो जिंदगी कहीं आस पास होगी ।
पहाड़ से गिरते झरनों में ,
नदी में अठखेलियाँ करती होगी।
जंगल से जो आती है जो महक ,
फूलों से लदी उन घाटियों में होगी ।
आजादी का परचम लहराते हुए ,
आसमान में उड़ते पंछियों में होगी ।
शाम ढलते ही उग आया है चाँद ,
उस चांदनी रात में होगी ।
सावन में पड़े हैं झूले ,
उस बरसती बारिश में होगी ।
पहली बूँद से जो गीली हुई ,
उस मिटटी की खुशबु में होगी ।
रुई के नरम स्पर्श जैसे ,
नन्हे कोमल हाथों में होगी ।
क्यों बैठे हो तनहा ,
देखो जिंदगी आस पास ही तो है ।
देखो जिंदगी कहीं आस पास होगी ।
पहाड़ से गिरते झरनों में ,
नदी में अठखेलियाँ करती होगी।
जंगल से जो आती है जो महक ,
फूलों से लदी उन घाटियों में होगी ।
आजादी का परचम लहराते हुए ,
आसमान में उड़ते पंछियों में होगी ।
शाम ढलते ही उग आया है चाँद ,
उस चांदनी रात में होगी ।
सावन में पड़े हैं झूले ,
उस बरसती बारिश में होगी ।
पहली बूँद से जो गीली हुई ,
उस मिटटी की खुशबु में होगी ।
रुई के नरम स्पर्श जैसे ,
नन्हे कोमल हाथों में होगी ।
क्यों बैठे हो तनहा ,
देखो जिंदगी आस पास ही तो है ।
jindgi kahi aaspaas to hogi ,achchi kavita hai
ReplyDeleteshukriya
ReplyDeleteकल 02/09/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद!
रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक शुक्रिया...यशवंत जी....
Deleteसुन्दर रचना।
ReplyDeleteप्रभावित करता भाव प्रवाह .......
ReplyDeleteसुन्दर ,सरल और प्रभाबशाली रचना। बधाई।
ReplyDeleteसादर मदन