तेरा छूटा हुआ कुछ मुझे मिल जाए ,
कही तुझे एतराज तो न होगा ,
तेरा मन नहीं था तो तूने,
थाली में रखी रोटी को छोड़ा ,
नहीं पहनना था तो तूने,
अपने कुर्ते का बटन तोडा,
कितना खुशकिस्मत है ,
तेरी मर्जी में ही उस की मर्जी है,
मेरी तो तेरे से इतनी सी अर्जी है ,
तेरा कुछ टूटे तो न बर्बाद करना ,
हाथ से कुछ छूटे तो मुझे याद करना ,
किस्मत क्या है मैं नहीं जानता हूँ,
जिस दाने से पेट भरे उस को ईश्वर मानता हूँ ,
मेरा हिस्सा संभाल कर रखना ,
जाने आगे क्या क्या है देखना ,
में इस बात पर बेहद शर्मिंदा हूँ,
की तेरे फेंके हुए जूठन पर जिन्दा हूँ .....
sundar rachana....aabhar
ReplyDeleteवाह चित्र को बहुत ही सुन्दरता से परिभाषित किया है आपने साथ ही साथ सत्य से रूबरू भी करवाया है सुन्दर रचना हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें.
ReplyDeleteदर्दनाक हकीकत को रचना के माध्यम से अच्छे शब्द दिए हैं !!
ReplyDeleteबेहद संवेदनशील रचना...
ReplyDeleteबचपन भी कितना मजबूर है !
ReplyDeletesamvedansheel, dard se bhari hui.. rachna...
ReplyDeletedil ko chhooo gayee...
बहुत उम्दा प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDelete@मेरी बेटी शाम्भवी का कविता-पाठ
"तेरी मर्जी में ही उस की मर्जी है,मेरी तो तेरे से इतनी सी अर्जी है"----These lines are really appealing. I pray to god to bless such underprivileged children. Thanks once again for writing such an appealing poem and thanks for providing your valuable comments on Hindi Sahitya Margdarshan.
ReplyDeleteबेहद संवेदनशील
ReplyDeleteiss chhit ke chitran ke lia apko salam
ReplyDeletevery nice
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