Monday 1 July 2013

बड़ा विचित्र है नारी मन




बड़ा विचित्र है नारी मन
त्रिया चरित्र ये नारी मन 
खुद से खुद को छिपाती
कितने राज बताती 
अपने तन को सजाती  
सब साज सिंगार रचाती
हया से घिर घिर जाती 
जब देखती दर्पण  
प्रियतम से रूठ कर 
मोतियों सी टूट कर 
फर्श पर बिखर गयी जो
अरमान अपने समेटे 
अस्तित्व की चादर में लपेटे 
सम्मुख सर्वस्व किया अर्पण  
ममता की छावं  में
एक छोटे से गावं में 
चांदनी के पालने में  
लाडले को सुलाती 
परियों की कहानियां 
मीठी लोरियां सुनाती 
नींद को देती आमंत्रण  
खनकते हैं हाथ जिन चूड़ियों से 
तलवारें पकड़ना भी जान गए 
एक फूल से वो अंगार बनी  
लोहा सब उसका मान गए
न रखती कोई भ्रम  
दर्शाती अपना पराक्रम 
एक भोली सी सूरत 
बनी त्याग की मूरत
समझती सबकी जरूरत 
अपने सपनों का घोंटती गला 
इच्छाओं का करती दमन 
बहती अविरल धारा सी 
निर्मल गंगा सी है पावन 
मन उसका छोटा सा 
ओस की बूँद जितना 
समाई है जिसमें सृष्टि 
उसमें ओज है इतना 
अदभुत है उसका रूप 
दुर्लभ शक्तियों का है संगम 
बड़ा विचित्र है नारी मन 

16 comments:

  1. आपकी यह रचना कल मंगलवार (02-07-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.

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  2. वाह बहुत खूब

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  3. एक प्रतीक में आपने पूरा नारी चरित्र सामने रख दिया.

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  4. बखूबी नारी का चित्रण .....बहुत खूब...

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  5. बखूबी नारी का चित्रण .वाह.सुन्दर प्रभावशाली ,भावपूर्ण ,बहुत बहुत बधाई...

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    1. शुक्रिया... मदन मोहन जी

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  6. दुर्लभ शक्तियों का है संगम
    बड़ा विचित्र है नारी मन

    ....नारी मन का बहुत प्रभावी चित्रण....

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  7. वाकई सुंदर है यह अभिव्यक्ति..
    बधाई !

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  8. Behatarin Kavita se hamen avagat karane ke liye bahut bahut dhanyawad ManjushaJI..

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  9. नारी के मन को नारी के माध्‍यम से प्रकट किया आपने, जिसमें उसके मन के अनुभव सरल शब्‍दों में कविता रुप में टपक रहे हैं।

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  10. नारी शक्ति और नारी मन की भावना को बाखूबी लिखा है ...

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  11. नारी मन की भावना को बाखूबी लिखा है ...

    राज चौहान
    http://rajkumarchuhan.blogspot.in/

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  12. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !
    नवीनतम पोस्ट मिट्टी का खिलौना !
    नई पोस्ट साधू या शैतान

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  13. मञ्जूषा जी आपकी इस रचना को हमारा हरयाणा ब्लॉग पर साँझा किया है

    संजय भास्कर
    http://bloggersofharyana.blogspot.in

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