शमशान यहीं से है
यही रास्ता है
वहां तक जाने का
जहां तुम खड़े हो
जहां मैं खड़ी हूँ
मैं जान चुकी हूँ
ज्ञात है मुझे
मैं तुमसे कह रही हूँ
तुम सुन रहे हो ?
अरे तुम ही तो
यहां वहां मत देखो
और सुनो
तुम्हारा जीवन बीत गया
जो बचा है वो तेजी से बीत जायेगा
मैं जानती हूँ
तुम्हें भान नहीं हुआ
तुम्हारा जीवन कब बीता
कैसे बीता
अभी तक तो बंद मुट्ठी थी
सब कुछ था उसमें
अनायास जो खुल गयी
खाली मिले हाथ
अब ...
तुम जीना चाहते थे
अपने जीवन के एक एक पल को
मगर नहीं जी पाये
अब ये प्रश्न बन गया है
तुम्हारे लिए
तुम्हारा ही है अपने आप से
प्रतिदिन तुम ये प्रश्न करते हो खुद से
पर उत्तर नहीं मिलता
मिलेगा भी नहीं
इस सवाल पर अचरज कैसा ?
कोई और मौका भी नहीं
काश.........
जैसे शब्द सिर्फ पीड़ा देते हैं
जीवन असफल लग रहा है
प्रेम भी अधूरा रह गया
जीवन में मिली असफलताएं
एक दिन प्रश्नों में तब्दील हो जाती हैं
अब उम्र का वो दौर आ पहुंचा है
जिसके बीतते क्षणों में
थकान के सिवाय कुछ नहीं
तन की थकान से ज्यादा
मन की थकान
बड़ा विस्मयी है जीवन का खेल
क्या करें ?
खेलना भी पड़ेगा और
अंत में हार भी जायेगें
जीवन तो अंत में हारना ही है ... छोटी छोटी जीत अति रहती हैं बीच में ...
ReplyDeleteकटु सत्य...मगर जीवन खत्म होता कहाँ है एक बार फिर वही दौड़ शुरू हो जाती है...
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति... सच को प्रस्तुत करती रचना....
ReplyDeleteबिलकुल...जीतना हारना यही जीवन है .....जो यह समझ गया.. अगला दिन उसके लिए फिर एक नई शुरुआत का होता है ।
ReplyDeleteसत्य लिखन अतिसुन्दर लेखन
ReplyDeleteआभार
मेरे ब्लॉग पर स्वागत है।