महक नरगिसी फूलों की आई जंगल से
न पता न मालूम कौन उसका माली है
मुहब्बतों अल्फाजों से भरे पन्ने दिखे
मगर दिखे सबके दिल खाली खाली हैं
ये कौन है जो रोकता है उसका रास्ता
उजाड़ मन के बीहड़ कोने में झांकता
एक सांवला सलौना रूप नजर आया
उडी जो रुख पर जुल्फें काली काली हैं
मन को सींचते भीगे भीगे थे एहसास
पहली बूंद से अंकुर में जगी वो प्यास
बेरुखी पतझड़ से भी ज्यादा हो जाए
क्या सोच जहन में ऐसी ऋतुएँ पाली हैं
प्रतिमा यौवन की करती अपना श्रृंगार
मिलन की आस प्रेम भी आ पहुंचा द्वार
आहट से तेज हुई धड़कनें हया से घिरी
चौखट पर गिरी उसकी लटकती बाली है
बहुत सुन्दर रचना |
ReplyDeleteनई रचना मेरा जन्म !
आज 09 /जुलाई /2014 को आपकी पोस्ट का लिंक है http://nayi-purani-halchal.blogspot.in (कुलदीप जी की प्रस्तुति में ) पर
ReplyDeleteधन्यवाद!
बहुत बहुत आभार यशवंत यश जी..इस सम्मान हेतु
Deleteबेहद प्यारी और मन को बिना बारिश भिगो देने वाली प्रस्तुति। बहुत खूब
ReplyDeleteमन की भावनाओं का दरिया बह चला इस कविता के माध्यम से. सुंदर प्रस्तुति. बधाई....!!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर......
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना..
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना..
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना..
ReplyDeleteAti marmsparshy..sunder..rachna..badhayi..
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........
ReplyDeleteaccha hai... khub accha hai
ReplyDeleteप्रतिमा यौवन की करती अपना श्रृंगार
ReplyDeleteमिलन की आस प्रेम भी आ पहुंचा द्वार
मन को छूँती कविता
http://savanxxx.blogspot.in