Tuesday, 8 July 2014

भीगे भीगे एहसास









महक नरगिसी फूलों की आई जंगल से 
न पता न मालूम कौन उसका माली है 
मुहब्बतों अल्फाजों से भरे पन्ने दिखे 
मगर दिखे सबके दिल खाली खाली हैं 

ये कौन है जो रोकता है उसका रास्ता 
उजाड़ मन के बीहड़ कोने में झांकता 
एक सांवला सलौना रूप नजर आया 
उडी जो रुख पर जुल्फें काली काली हैं

मन को सींचते भीगे भीगे थे एहसास 
पहली बूंद से अंकुर में जगी वो प्यास  
बेरुखी पतझड़ से भी ज्यादा हो जाए  
क्या सोच जहन में ऐसी ऋतुएँ पाली हैं  

प्रतिमा यौवन की करती अपना श्रृंगार 
मिलन की आस प्रेम भी आ पहुंचा द्वार 
आहट से तेज हुई धड़कनें हया से घिरी 
चौखट पर गिरी उसकी लटकती बाली है 

13 comments:

  1. आज 09 /जुलाई /2014 को आपकी पोस्ट का लिंक है http://nayi-purani-halchal.blogspot.in (कुलदीप जी की प्रस्तुति में ) पर
    धन्यवाद!

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    1. बहुत बहुत आभार यशवंत यश जी..इस सम्मान हेतु

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  2. बेहद प्यारी और मन को बिना बारिश भिगो देने वाली प्रस्तुति। बहुत खूब

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  3. मन की भावनाओं का दरिया बह चला इस कविता के माध्यम से. सुंदर प्रस्तुति. बधाई....!!!

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  4. बहुत सुन्दर......

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  5. भावपूर्ण रचना..

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  6. भावपूर्ण रचना..

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  7. भावपूर्ण रचना..

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  8. Ati marmsparshy..sunder..rachna..badhayi..

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  9. बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........

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  10. प्रतिमा यौवन की करती अपना श्रृंगार
    मिलन की आस प्रेम भी आ पहुंचा द्वार
    मन को छूँती कविता
    http://savanxxx.blogspot.in

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