तुम आये हो तो मैं आती हूँ
राज कुछ दिल के समझाती हूँ
इन बंद दरवाजों की जंजीरों को खोल दूं जरा
इन चंद दीवारों का दामन छोड़ दूं ज़रा
दर्द के कितने किस्से आकर सुनाती हूँ
कौन दुःख आया मेरे हिस्से सब बतलाती हूँ
गम में डूबा रहा रात भर उस दिल को निचोड़ लूं ज़रा
पुर्जा पुर्जा हो गयी उस तस्वीर को जोड़ लूं ज़रा
कुछ पुराने जख्म तुम्हें दिखलाती हूँ
साथ अपने कोई मरहम ले आती हूँ
मृत शय्या पर जो पड़ी रही उसको कफ़न ओढ़ दूं ज़रा
तनहा आँगन में खड़ी रही उसे वापिस मोड़ दूं ज़रा
तन्हाई को दूर कहीं छोड़ आती हूँ
परछाई के पीछे दौड़ आती हूँ
बंद पड़ी दिवार घडी की सुइयों को छेड़ दूं ज़रा
चिथड़ों में लिपटे लिबास को उधेड़ दूं ज़रा
सुप्त मन की तृष्णा को जगा आती हूँ
अनसुलझी पहेली को सुलझा आती हूँ
खण्डर बन चुकी इस हवेली से विदा तो हो लूं ज़रा
दुल्हन बन आयी थी नवेली बहा लूं दो आंसूं ज़रा
एक कहानी कुछ बातें दफना आती हूँ
कागज पर लिखी यादें जला आती हूँ
तुम आये हो तो मैं आती हूँ
यादों को सहेजती सुंदर भावपूर्ण रचना...
ReplyDeleteबहुत सुंदर !
ReplyDeleteसुन्दर ,प्यारी यादें...
ReplyDeleteसुन्दर रचना...
;-)