माँ मैंने तुम्हें देखा है आज
नजदीक से
तुम्हारे चेहरे पर इतनी झुर्रियां
कैसे पड़ गयी
माँ तुम इतनी जल्दी बूढ़ी कैसे
हो गयी
क्या ये असमय पड़ रही रेखाएं
मेरे लिए की गयी जन्म से लेकर
आज तक की चिंताएं हैं
जब मैं ठिठुरती ठंड में अपनी
जुराबें उतार कर नंगे पावं
बरामदे में दौड़ पड़ता
उस ठण्ड में भी तुम पसीने से
भर जाती
और हाथ पावं ठंडे पड़ जाते
कहीं मैं बीमार न हो जाऊं
मेरी एक हलकी सी छींक तुम्हें
शायद रात भर सोने नहीं देती थी
तुम माँ हो ये बात तुम कभी न
भूल पायी
मैं तुम्हारा बेटा जाने ये कैसे भूल गया
की तुम्हारे हाथों की हड्डियां अब
कमजोर हो चुकी हैं
तुम्हारी नजर मुझे चोरी से असहाय
होकर देखती है
तुम अपने चश्मे को बदलवाने के लिए
भी नहीं कहती हो
जबकि तुम मेरे लिए हर रोज
नए कपडे लाती थी
क्यों माँ क्या मैं इतना पराया हो गया हूँ
या इतना भी नहीं समझता
तुम आँगन में चर्र पर्र करती चिड़ियों को
उड़ा देती थी
ताकि मैं आराम से सो सकूं
तुम्हारी आँखें उस चूल्हे की राख
के धुएं में और ज्यादा खराब हो गयी हैं
जिस के चारों तरफ तुम्हारा पूरा
जीवन गुजर गया
कितनी अपनी अभिलाषाएं तुमने
मेरी एक ख़ुशी के लिए आग में जला दी
उसी राख में तुम्हारे न जाने कितने
अरमान दबे पड़े हैं
मुझे कितनी मर्तवा भूख लगी होगी
कितनी रोटियां तुमने मेरे लिए बनाई
होंगी
मैं जानता हूँ आज तुम्हें भूख लगी है न
न जाने मैं तुम्हारे लिए एक रोटी
बना पाऊंगा कि नहीं
तुम मेरे पास बैठो माँ
मुझे बस बताते जाना
मैं बना लूंगा माँ
तुम हो तो मैं सब कर लूंगा माँ
सब कर लूंगा
मां को समर्पित बहुत ही भावपूर्ण और सुंदर पंक्तियां मंजूषा जी
ReplyDeleteबहुत कोमल भव !
ReplyDeleteममतामयी माँ के ममता को सुंदर शब्द दिए हैं..... बहुत सुंदर ....
ReplyDeleteकल 30/01/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद !
बहुत सुन्दर भाव ...माँ के संस्कार ही बेटे में बोल रहे हैं
ReplyDeleteबहुत कोमल ... सुंदर शब्द .....
ReplyDeleteबहुत ही मर्मस्पर्शी और कोमल भाव रचना... माँ के प्रति सुंदर समर्पण भाव..
ReplyDeleteprathamprayaas.blogspot.in-सफलता के मूल मन्त्र