जज्बातों को रौदां है बहुत अपने
तब जाकर जिंदगी तेरे पहलु तक आये हैं
है उम्मीद इन जलते चिरागों से बहुत
जो रौशनी में इतने झिलमिलाये हैं
गुलिस्तां के फूलों के रंग इतने सुर्ख न थे
जितने की तेरे मिलने के बाद हो आये हैं
होश अपने मखमली एहसासों के रख छोड़े
जो तूने अपने बेगानों के बीच कराये हैं
मुट्ठी भर रेत जो हवाओं में घुलने लगी
सरकते वक्त से कुछ पल हमने बचाये हैं
कोशिशें तमाम यूँ ही जारी है तैरने की
गहरे समंदर में जब से गोते लगाये हैं
बीती जिंदगी का फिछले सिर खोला हमने
कुछ दबे राज ऐसे भी उभर कर आये हैं
गहराता जाता है अँधेरा चारों तरफ
अश्कों में डूबे लब्ज जब से स्याह हो आये हैं
कमी कोई नहीं है देख लो फिर भी मगर
मांगने को बन के फकीर तेरे दर पर आये हैं
बहुत ही सुन्दर और बेहतरीन रचना...
ReplyDelete:-)
बहुत खूबसूरत लिखा....!!
ReplyDeleteकमी कोई नहीं है देख लो फिर भी मगर
ReplyDeleteमांगने को बन के फकीर तेरे दर पर आये हैं ..
बहुत खूब .. ये प्रेम का असर है ... फ़कीर होना भगवान के करीब होना ही तो है ...
है उम्मीद इन जलते चिरागों से बहुत
ReplyDeleteजो रौशनी में इतने झिलमिलाये हैं
बहुत सुंदर पंक्तियाँ !
कल 06/12/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद!
हार्दिक आभार यशवंत जी..
Deleteज़िन्दगी और हालातों को पल पल जीने वाले जब लिखते हैं, तो जज़बातों का सैलाब ला देते हैं।
ReplyDeleteआदरणीय मंजूषा जी कुछ आपकी लेखनी में भी कुछ ऐसा ही जादू है।
बहुत बहुत शुभकामनायें
सुन्दर रचना .......
ReplyDeleteहै उम्मीद इन जलते चिरागों से बहुत
ReplyDeleteजो रौशनी में इतने झिलमिलाये हैं
..बहुत बढ़िया ..उम्मीद है तो प्यार बना रहता है ..
कमी कोई नहीं है देख लो फिर भी मगर
ReplyDeleteमांगने को बन के फकीर तेरे दर पर आये हैं ..
.............बहुत खूब शुभकामनायें
मुट्ठी भर रेत जो हवाओं में घुलने लगी
ReplyDeleteसरकते वक्त से कुछ पल हमने बचाये हैं
...वाह! बहुत सुन्दर...
कमी कोई नहीं है देख लो फिर भी मगर
ReplyDeleteमांगने को बन के फकीर तेरे दर पर आये हैं ..
.......वाह बहुत उम्दा भाव
आह और वाह दोनों एक साथ ...:) बेहतरीन भाव संयोजन से सजी कोमल भाव अभिव्यक्ति ...
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