Friday 26 July 2013

पगडंडी







घने पेड़ों के बीच बनी पगडंडी उस गावं जाती थी 

पैरों तले दबती उस घास का फिर से उग आना
देवदार की पत्तियों से हवा का टकराना 
वो सायं सायं की आवाज आती थी 

महकते जंगली फूलों की वो खुशबू 
चहकती कोयल की वो कू-कू 
जैसे कोई साज बजाती थी 

पानी के झरनों की कडकती ठंडाई 
गीले पत्थरों पर जमीं वो काई
जीवन का ठहराव  दिखाती थी 

ठंडी धुप की हलकी गरमाहट
हिलती पत्तियों की धीमी सुगबुगाहट 
कोई राज सुनाती थी 

दूर होती डालियों का पास आकर लिपटना 
शोर  करते झिगुर का होले से सिमटना 
जैसे कोई सितार बजती थी  

यहाँ वहां मंडराना रंग बिरंगी तितलियों का 
शाम ढलते लौट आना उड़ते पंछियों का 
घर की याद दिलाती थी 

उठने लगी कहीं दूर धुंध हलकी हलकी 
बरसाने लगी गीली बारिश छलकी छलकी
मिटटी की भीनी खुशबू आती थी 

डाल बदन पर कम्बल हम लपेट चले 
बिखरी हवाओं  में यादें समेट चले 
अब सिर्फ याद सताती थी 

घने पेड़ों के बीच बनी पगडंडी उस गावं जाती थी 

10 comments:

  1. घने पेड़ों के बीच बनी पगडंडी उस गावं जाती थी......
    बहुत खुबसूरत प्रस्तुति....

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  2. उठने लगी कहीं दूर धुंध हलकी हलकी
    बरसाने लगी गीली बारिश छलकी छलकी
    मिटटी की भीनी खुशबू आती थी

    बहुत सुंदर रचना,

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  3. डाल बदन पर कम्बल हम लपेट चले
    बिखरी हवाओं में यादें समेट चले
    अब सिर्फ याद सताती थी

    ....बहुत संवेदनशील सुन्दर शब्द-चित्र...बहुत सुन्दर

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  4. ये पगडण्डी ही तो जीवन है .. स्थिर रहती है पर कितने लम्हे गुज़र जाते नया एहसास लिए उस पर ...

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  5. जीवन के गाँव तक ले जाती, स्मृतियों की पगडंडी ने मुग्ध कर दिया........

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  6. bahut hi sundar .........pagdandi aur prakritik chhata ka sundar rekhankan .......sangrhneey rachana ke hardik badhai .

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  7. अनुपम भाव संयोजन, इन कंक्रीट के जंगलों में अब नजाने कहाँ खो गयी वो पगडंडियाँ अब तो बस यादें है।

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  8. एकदम सटीक तुलना..बहुत सुन्दर सी प्यारी रचना ..

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  9. आपका शुक्रिया मेरे ब्लॉग चलते-चलते का अनुसरण करने के लिए .....हालाँकि आपकी रचनाएँ पहले भी पढता आया हूँ ....!!!!

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  10. बहुत सुन्दर रचना
    वरन रचना नहीं …. एक चल चित्र जैसे नेत्र के सामने दिखता चला गया
    बहुत सुन्दर लेखनी
    बहुत बहुत बधाई

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