खामोश निगाहों की ये उदासी कैसी है
बंद मुठ्ठी से रेत सरकने जैसी है
बरबस ही भर आता है मन
जब रोता है कोई दर्पण
ये तन्हाई कैसी है
कोई आहट सुनाई देती है
कमरे में दिखाई देती है
ये परछाई कैसी है
बेरंग हुई दीवारों की
दो टूटे हुए किनारों की
ये जुदाई कैसी है
मुरझा गयी हर कली
आज चमन में है चली
ये पुरवाई कैसी है
सजा मुकम्मल न हुई उसकी
वक्त ने दी है जिसकी
ये गवाही कैसी है
बंद मुठ्ठी से रेत सरकने जैसी है
बरबस ही भर आता है मन
जब रोता है कोई दर्पण
ये तन्हाई कैसी है
कोई आहट सुनाई देती है
कमरे में दिखाई देती है
ये परछाई कैसी है
बेरंग हुई दीवारों की
दो टूटे हुए किनारों की
ये जुदाई कैसी है
मुरझा गयी हर कली
आज चमन में है चली
ये पुरवाई कैसी है
सजा मुकम्मल न हुई उसकी
वक्त ने दी है जिसकी
ये गवाही कैसी है
सुन्दर लेख
ReplyDeleteसुन्दर लेख
ReplyDeleteबरबस ही भर आता है मन जब रोता है कोई दर्पण बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ..!!
ReplyDeleteभावों को सटीक प्रभावशाली अभिव्यक्ति दे पाने की आपकी दक्षता मंत्रमुग्ध कर लेती है...
ReplyDeleteबहुत सुंदर और उत्तम भाव लिए हुए.... खूबसूरत रचना......
ReplyDeleteराज चौहान
http://rajkumarchuhan.blogspot.in
बहुत सुंदर ,
ReplyDeleteयहाँ भी पधारे ,
हसरते नादानी में
http://sagarlamhe.blogspot.in/2013/07/blog-post.html
ReplyDeleteये तन्हाई कैसी है
कोई आहट सुनाई देती है
बहुत सुंदर,
यहाँ भी पधारे
गुरु को समर्पित
http://shoryamalik.blogspot.in/2013/07/blog-post_22.html
बहुत ही सुन्दर भाव अभिव्यक्ति...बधाई..
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