Tuesday 28 May 2013

जिंदगी आस पास ही तो है ।

तुम बैठे  हो तनहा ,
देखो जिंदगी कहीं आस पास होगी ।
पहाड़ से गिरते झरनों में ,
नदी में अठखेलियाँ करती होगी। 
जंगल से जो आती है जो महक ,
फूलों से लदी उन घाटियों में होगी ।
आजादी का परचम लहराते हुए ,
आसमान में उड़ते पंछियों में होगी ।
शाम ढलते ही उग आया है चाँद ,
उस चांदनी रात में होगी ।
सावन में पड़े हैं झूले ,
उस बरसती बारिश में होगी ।
पहली बूँद से जो गीली हुई ,
उस मिटटी की खुशबु में होगी ।
रुई के नरम स्पर्श जैसे ,
नन्हे कोमल हाथों में होगी ।
क्यों बैठे हो तनहा ,
देखो जिंदगी आस पास ही तो है ।




7 comments:

  1. कल 02/09/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद!

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    1. रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक शुक्रिया...यशवंत जी....

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  2. प्रभावित करता भाव प्रवाह .......

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  3. सुन्दर ,सरल और प्रभाबशाली रचना। बधाई।
    सादर मदन

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मैं देख रही थी...

                                              मैं देख रही थी   गहरी घाटियां सुन्दर झरने   फल फूल ताला...