Monday 27 May 2013

तान हाथ में तलवार

युग बदले सदियाँ बदली ,
न बदला तेरा रूप हर बार ,
सीता बन तुम कष्ट में  रही ,
अग्नि परीक्षा को हो गयी तैयार । 
नारी तुम कोमल करुण सी ,
मातृत्व तुम्हारा आधार, 
माली बन बगिया सींचती  हो ,
न चुका पांएगे तुम्हारा आभार । 
कमजोर विवश अबला समझ ,
तेरी मर्यादा को किया तार तार 
मौन दृष्टि से तमाशबीन बन ,
देखता रहा सारा  संसार । 
कोई न छू  सके तेरे दामन को, 
निर्मल आँचल न हो दागदार ,
हृदय  में अग्नि ज्वाला लिए ,
उस हाथ पर  कर ऐसा वार । 
जाग तू  न मूँद अपनी आँखें,
 न हो जीने को लाचार,
चूड़ियाँ  तोड़ अपने भीतर पौरष  जगा ,
तान ले हाथ में तलवार । 
कितने कंस कितने रावण, 
तेरे चारों और खड़े मचाते हाहाकार ,
दुर्गा बन तो काली है तू ले भवानी का रूप ,
इन दैत्यों का कर संहार । 

1 comment:

  1. बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुती,आभार.

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