युग बदले सदियाँ बदली ,
न बदला तेरा रूप हर बार ,
सीता बन तुम कष्ट में रही ,
अग्नि परीक्षा को हो गयी तैयार ।
नारी तुम कोमल करुण सी ,
मातृत्व तुम्हारा आधार,
माली बन बगिया सींचती हो ,
न चुका पांएगे तुम्हारा आभार ।
कमजोर विवश अबला समझ ,
तेरी मर्यादा को किया तार तार
मौन दृष्टि से तमाशबीन बन ,
देखता रहा सारा संसार ।
कोई न छू सके तेरे दामन को,
निर्मल आँचल न हो दागदार ,
हृदय में अग्नि ज्वाला लिए ,
उस हाथ पर कर ऐसा वार ।
जाग तू न मूँद अपनी आँखें,
न हो जीने को लाचार,
चूड़ियाँ तोड़ अपने भीतर पौरष जगा ,
तान ले हाथ में तलवार ।
कितने कंस कितने रावण,
तेरे चारों और खड़े मचाते हाहाकार ,
दुर्गा बन तो काली है तू ले भवानी का रूप ,
इन दैत्यों का कर संहार ।
न बदला तेरा रूप हर बार ,
सीता बन तुम कष्ट में रही ,
अग्नि परीक्षा को हो गयी तैयार ।
नारी तुम कोमल करुण सी ,
मातृत्व तुम्हारा आधार,
माली बन बगिया सींचती हो ,
न चुका पांएगे तुम्हारा आभार ।
कमजोर विवश अबला समझ ,
तेरी मर्यादा को किया तार तार
मौन दृष्टि से तमाशबीन बन ,
देखता रहा सारा संसार ।
कोई न छू सके तेरे दामन को,
निर्मल आँचल न हो दागदार ,
हृदय में अग्नि ज्वाला लिए ,
उस हाथ पर कर ऐसा वार ।
जाग तू न मूँद अपनी आँखें,
न हो जीने को लाचार,
चूड़ियाँ तोड़ अपने भीतर पौरष जगा ,
तान ले हाथ में तलवार ।
कितने कंस कितने रावण,
तेरे चारों और खड़े मचाते हाहाकार ,
दुर्गा बन तो काली है तू ले भवानी का रूप ,
इन दैत्यों का कर संहार ।
बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुती,आभार.
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