तुम मुझे देवी का दर्जा ना दो
तुम मेरी महिमा का बखान ना करो
ना ही मेरी ममता करुणा वात्सल्य जैसी भावनाओं का ढोंग रचाओ
देह का सौंदर्य और प्रेम का गुणगान किसी कविता में ना करो
मेरे त्याग और बलिदान को जग से ना कहो
मुझे गृहलक्ष्मी और अन्नपूर्णा जैसे देवीय नाम ना दो
मैं जानती हूँ सब
ये सब तुम क्यों कहते हो
कितना छल करोगे मुझसे
मैं निष्प्राण नहीं काठ की मूर्ति जैसी
मैं सांस लेती हूं
दर्द से विहल होती हूं
देवी का दर्जा देकर और क्या क्या करवाओगे
देवी होने के वाबजूद मैं अपने अस्तित्व की तलाश में हूं
आखिर क्यों ?
मैं मूढ़मति इतना भी ना जान सकी
राम की मैं सीता थी
थी महाभारत में मैं पांच पतियों वाली
मानव क्या
देवता क्या
स्वयं ईश्वर के हाथों जो छली गयी
वो थी मैं
एक आग्रह
एक विनती है तुमसे मेरी
तुम मुझे सिर्फ एक इंसान ही रहने दो
नारी हृदय की पीड़ा को शब्द देती सशक्त रचना...
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