Friday, 24 July 2015

"एक लम्हा कर्ज"..कहानी



                 


                                       



सुबह के नौ बज रहे थे गौतम का आज फिर यूनिवर्सिटी जाने का मन नहीं था, इसलिए फ़ोन कर के छुट्टी ले ली मगर ऐसा कब तक चलने वाला था,  चेहरे पर एक अजीब ख़ामोशी पसरी थी और पलंग पर लेटे लेटे बड़ी देर से उस पंखे को लगातार देखे जा रहा था, देख तो पंखे को रहा था पर मन कहीं और था | ज़रा सा ध्यान हटा तो पानी पीने के लिए टेबल पर रखी बोतल की तरफ हाथ बढ़ाया परन्तु बोतल रात भर में खाली हो चुकी थी | नजर टेबल की तरफ फिर गयी, एस्ट्रे बुझी हुई सिगरेटों से भर गयी थी कुछ ऐश तो टेबल पर भी गिर गयी थी, वो जानता था उसने पिछली कुछ रातें किस तरह गुजारी है तभी एक तेज आवाज हुई खिड़की के शीशे से किसी चीज़ के टकराने की ,अखबार वाले ने उस कमरे में फैली ख़ामोशी को तोड़ दिया था गौतम अचानक उठ बैठा, टेबल के कोने में रखे अपने चश्मे को पहना और डिब्बी में पड़ी एक आखिरी सिगरेट निकाली और बड़े ही अनमने भाव से उठकर कमरे से सटी बालकनी का दरवाजा खोला | जून के महीने में गर्मी अपने चरम सीमा पर थी तेज धुप में गौतम की आँखें चुंधिया गयी ,अखबार को उठा कर अंदर पलंग की तरफ फैंका और खुद लाइटर से सिगरेट सुलगा ली ,पहला कश भरते ही उसने अपनी बाईं तरफ देखा तो गमले में रखा तुलसी का पौधा पूरी तरह सूख चुका था ,देख कर अचानक उसका मन भर आया आंखें नम हो गयी,इस तुलसी के पौधे को अनुष्का अपने साथ इस घर में लायी थी | एकाएक वही सवाल जो पिछले कुछ दिनों से उसे जीने नहीं दे रहा था, ऐसा कैसे हो सकता है अनुष्का उसे छोड़ कर कैसे जा सकती है ,एक के बाद एक सवाल तेजी से जहन में आ रहे थे और सिगरेट का धुंआ उन्हीं सवालों को हवा में उड़ा दे रहा था गौतम के पास इन सवालों के जवाब नहीं थे | 

गौतम और अनुष्का एक दूसरे से बेहद प्यार करते थे, उसे याद है उसने पहली बार जब अनुष्का को देखा था तो वो देखता ही रह गया था, जब पहली बार गौतम ने अनुष्का को देखा था तब वो सिर्फ अठारह बरस की थी, वो बारवीं की परीक्षा दे चुकी थी और गौतम सताईस बरस का था यूनिवर्सिटी में कलर्क था हाल ही में उसे ये नौकरी मिली थी, अनुष्का की बुआ और गौतम एक ही विभाग में कार्यरत थे, अनुष्का कभी कभार अपनी बुआ से मिलने यूनिवर्सिटी आती थी बारवीं की परीक्षा देने के बाद वो बुआ के पास ही आ गयी थी | उस दिन भी गौतम अपनी फाइलों में व्यस्त था कि अचानक से एक मीठी दिलकश आवाज उसके कानों में गूंजी "एक्सक्यूज़ मी" गौतम ने सर उठा कर देखा तो हतप्रभ रह गया कुछ ठगा सा, अनायास ही एक सुन्दर चेहरा उसकी आँखों के सामने उभर आया था, धानी चुनर में लिपटी वो कमसिन यौवना ,उसका दूधिया रंग,कजरारी आँखें लम्बे बाल उसके दिल को बहकाने के लिया काफी थे कि बड़ी बड़ी आँखें कर अनुष्का फिर से बोली "एक्सक्यूज़ मी ,अलका जी कहां मिलेगी ?" उस दिन अनुष्का पहली बार बुआ से मिलने यूनिवर्सिटी आई थी, गौतम के मुहं से सिर्फ जी निकला उसका ध्यान सवाल पर केंद्रित नहीं था, वो तो एक टक उस सौंदर्य से परिपूर्ण यौवना को देखे जा रहा था जो एक ताजा हवा के झौंके की भांति उसे अंदर से गुदगुद्दा रही थी , अनुष्का ने फिर अपना सवाल दोहराया मगर इस बार दूसरे ढंग से ,''जी मैं आपसे पूछ रही हूँ अलका जी जो यहां कलर्क हैं वो कहां मिलेगी ?" गौतम को झटका सा लगा झेंपते हुए वो कुछ परेशान अवस्था में अपनी सीट से उठ खड़ा हुआ और अनुष्का के चेहरे से नजर हटा कर इधर उधर देखने लगा और उत्तर दिया "जी अभी बताता हूं " अपनी टेबल से चपड़ासी को जो फाइल इधर उधर दे रहा था अपनी ओर आने का इशारा किया और पूछा ''अलका जी कहां हैं अपनी सीट पर दिखाई नहीं दे रही " बदले में उतर मिला  ''साहब बाहर गयी हैं अभी अभी  केन्टीन की तरफ  जाते हुए देखा कुछ और लोग भी साथ में थे" चपड़ासी ने जवाब दिया, अनुष्का चपड़ासी का जवाब सुन बेसब्र हो गयी और मुहं से   ''ओह्ह" निकला ,  गौतम फिर अनुष्का को देखने लगा इस बार वो उसे कुछ परेशान लगी और वो परेशानी उसके चेहरे के नूर को कुछ फीका कर रही थी , गौतम ने अनुष्का को सहज करने के लिए इतना ही कहा "आप बैठिये प्लीज़ वो कुछ ही देर में आ जाएंगी" अनुष्का कुछ न कहते हुए हलकी फीकी सी मुस्कान भरते हुए पास रखी कुर्सी पर बैठ गयी | गौतम ने फिर से अपनी फाइलों की और रुख किया मगर अब दिल काम में कहां लगने वाला था, दिल में तो अजीब सी हलचल हो रही थी ,जो पहले कभी नहीं हुई और ये पल उसे जिंदगी के सबसे हसीन पल लग रहे थे जैसे कोई सुनहरा ख्वाब हकीकत का रूप ले रहा हो | पैन उँगलियों के बीच जरूर था मगर लिखने की कोशिश भी नाकाम लग रही थी, इस बार उसने चोरी से अनुष्का को देखा और डर भी रहा था कहीं वो उसे इस तरह देखते हुए देख न ले, वो बला की सुन्दर थी बेहद आकर्षक कि जैसे ईश्वर ने उसे बनाते वक्त भूल से भी कोई भूल न की हो | 
अनुष्का कुछ परेशान होकर कभी इधर कभी उधर तो कभी फर्श को देख रही थी, गौतम को कुछ अच्छा नहीं लगा उसने पूछा  "क्या आप पानी लेंगी" अनुष्का ने नजरें उठाये बिना जवाब दिया "नहीं शुक्रिया" इस बार गौतम ने अपने काम को किनारे रख उससे बात करने की कोशिश की एक विश्वास भरे अंदाज में पूछा "अलका जी आपकी क्या लगती हैं?" अपने सवाल को फिर से दोहराया "मेरा मतलब है कि आपकी रिश्तेदार हैं या.."  तभी अनुष्का ने जवाब दिया "जी वो मेरी बुआ हैं" इस बार गौतम सिर्फ जी कह कर मुस्कुराया, आगे की बात करने के लिए कोई सिरा नहीं मिल रहा था, गौतम जानता था की वो अब उस कमसिन यौवना से उसका नाम पूछना चाहता है मगर कैसे ? अगर गलती से भी बुरा मान गयी तो ये बहुत ही बुरा होगा खासकर उसके दिल के साथ, ये सोचकर उसने चुपी साध ली | फाइलों का ढेर एक बार फिर से आगे कर दिया और अपने व्यस्त होने का नाटक करने लगा ,अनुष्का भी उसकी पहली नजर को पहचान गयी थी मगर जान कर अनजान बन गयी | करीब पंद्रह मिनट गुजर गए यूँ ही चुपचाप बैठे दोनों को, अचानक एक हाथ अनुष्का के कंधे पर आ लगा और आवाज आई "अनु तू", ये आवाज अनुष्का की बुआ की थी ,अनुष्का अचानक से खड़ी हुई "ओह्ह बुआ तुम भी न.. पता है कितनी देर हो गयी तुम्हारा इन्तजार करते करते, कहां चली गयी थी ? |" अलका हंस पड़ी और कहने लगी "अरे यहीं थी बाहर, मुझे क्या पता तू आज यूनिवर्सिटी आएगी सुबह को तूने कुछ कहा नहीं जब मैं घर से निकली, चल उधर आ जा" और अनुष्का को अपनी सीट की तरफ आने का इशारा किया |  फिर अचानक से अलका पलटी जैसे अपनी भूल का एहसास हुआ हो और गौतम की तरफ देख कर कहा  "गौतम जी ये मेरी भांजी अनुष्का है और अनुष्का ये गौतम बाबू हैं नए नए यहां आये हैं, गौतम बाबू आज आपने लंच नहीं किया क्या " गौतम अचानक किये इस सवाल से कुछ हड़बड़ा गया फिर सहज होकर मुस्कुराया और अनुष्का की तरफ हेलो कहा और सवाल के जवाब में बस इतना कहा "जी नहीं, जी अभी कर लूंगा" अनुष्का को गौतम की इस हालत पर हसीं आ गयी मगर हसीं नहीं हल्का सा मुस्कराई और अपनी बुआ के पीछे चल दी |

गौतम को उसकी मुस्कराहट ने अब होश में न रखा था उसके चेहरे पर अकस्मात् एक शर्मीलापन उभर आया जिसे गौतम ने छुपाने का भरसक प्रयास किया मगर कामयाब न हो सका मगर उसे अपने सवाल का जवाब मिल गया था जिसके लिए वो बेसब्र था, मन ही मन सोचा अनुष्का, तो मैडम का नाम अनुष्का है, उसके फिर एक हलकी सी नजर अलका जी की सीट की तरफ डाली तो पाया बुआ भांजी बातों में व्यस्त हो चुकी हैं ,अनुष्का दूर से भी उतनी ही खूबसूरत लग रही ही जितनी की पास से | भूख जोरों की लग रही थी इसलिए सारा काम एक तरफ़ा समेट कर अब गौतम ने लंच के लिए केन्टीन जाने का रुख किया | गौतम पर एक नया खुमार सा चढ़ा हुआ था वो समझ नहीं पा रहा था ये महज आकर्षण भर है या पहली नजर में होने वाला प्यार ,लंच करते वक्त भी यहीं सोचता रहा और मन ही मन हर्षित हो रहा था आखिर जो जिंदगी में आज तक न हुआ वो हो ही गया ,हो न हो यक़ीनन अनुष्का भी इस बात को जान चुकी है सोचकर मंद मंद मुस्करा दिया | जब तक गौतम वापिस अपने कार्य स्थान पर पहुंचा तब तक अनुष्का जा चुकी थी ,खाली कुर्सी देखते ही मन बोझिल हो गया और मन मसोसते हुए अपने जगह बैठ गया | इस पहली मुलाकात ने गौतम और अनुष्का के प्यार की नीवं रख दी थी | 

सिगरेट पूरी तरह बुझ चुकी थी और अतीत का वो सुनहरा पन्ना धुआं बन के हवा में उड़ गया था, गौतम एक लम्बी सांस भरते हुए वापिस कमरे में आ कर टांगे लटका कर पलंग पर बैठ गया |अख़बार को खोला मगर पढ़ने का मन नहीं किया फिर एक तरफ फैंक दिया आधे मन से रसोई की तरफ गया एक नजर डालने पर ऐसा लग रहा था की बरसों से यहां खाना नहीं बना है रसोई घर, रसोई घर न हो कर एक स्टोर बन गया था ,सारा सामान बिखरा पड़ा था कोई भी चीज़ अपनी जगह पर नहीं थी  उसे याद आ रहा था कि खाना बनाते वक्त अनुष्का हमेशा कोई ना कोई गीत गुनगुनाया करती थी जो कि गौतम को बेहद पसंद था,  फिर अचानक... फ्रिज से पानी की बोतल निकाली और वापिस कमरे में आ गया | गौतम सोचने लगा एक लम्हे में अचानक सब कुछ कैसे बदल जाता है हमारी जिंदगी पर एक एक लम्हे का कर्ज रह जाता है |     
वो लम्हा कितना खास था, उसका कर्ज वो कभी भूल भी नहीं पायेगा जब गौतम के लिए अनुष्का उसकी जिंदगी बन कर उसकी दुनिया में हमेशा के लिए आ गयी थी, ऐसा लगा था कि सारी कायनात ने उसके लिए खुशियां समेट दी और दामन में भर दी हों ,अपने प्यार को पाना मतलब, जिंदगी को पाना था गौतम के लिए | गौतम ओर अनुष्का के इस सच्चे प्यार को उसकी बुआ ने हरी झंडी दे दी थी हालांकि अलका  नहीं चाहती थी की अनुष्का अभी शादी करे क्यों कि वो बहुत छोटी भी थी और पढ़ने में अच्छी भी थी, लेकिन गौतम के प्यार के आगे उसकी एक ना चली | गौतम एक सुलझा हुआ इंसान था बेहद नेक प्रवृति का ,शायद वो अनुष्का के लिए उपयुक्त भी था अगर वो अनुष्का को प्यार करता है तो उसे हर हाल में खुश भी रखेगा यही सोच कर अलका ने विवाह के लिए हामी भर दी थी | अनुष्का की मां की कुछ साल पहले बीमारी के चलते मृत्यु हो गयी थी जिसके कारण ये जिम्मेवारी अनुष्का के पिता ने अलका के कन्धों पर डाल दी थी | अलका अविवाहित थी इसलिए अनुष्का को अपनी  बच्ची समझ कर प्यार करती थी और दोनों बुआ भांजी न हो कर अच्छी सहेलियां भी थी |
दोनों का प्रेम विवाह था इसलिए गौतम अनुष्का बेहद खुश भी थे ,दोनों प्यार में इसकदर डूबे रहते कि साल कब बीत गया पता न चला | गौतम ने धीरे धीरे ये भी नोटिस किया कि अनुष्का को किताबें पढ़ने का बेहद शौक है उसने अनुष्का को खाली वक्त में हमेशा उस टेबल के इर्द गिर्द पाया जहां गौतम अक्सर कुछ न कुछ पढ़ने बैठता था | एक दिन गौतम से रहा नहीं गया और कहा "अनु तुम अपनी आगे की पढाई क्यों नहीं कर लेती" बात को बदल कर फिर ज़रा जोर दिया और कहा "मेरा मतलब है तुम्हें किताबें पढ़ने का शौक है और वैसे भी यही समय होता है पढ़ने का, तुम ग्रेजुएशन कर लो |"गौतम की बात सुन कर खुश तो हुई मगर थोड़े हैरानी भरे अंदाज में अनुष्का ने गौतम की तरफ देखा और कहा "अब अब तो शादी भी हो गयी क्या करूंगी आगे पढ़ कर और हंसते हंसते कहने लगी तुम नहा लो में नाश्ता बनाती हूँ " और रसोई में चली गयी | मगर गौतम के  मन में कुछ और था वो नहीं चाहता था की अनुष्का इस चूल्हे चौके के बीच रह कर अपनी जिंदगी यूं ही खराब कर दे ,उसे याद है उसने अनुष्का की बुआ को कहा था कि अनुष्का आगे अपनी पढ़ाई पूरी करेगी वो उसमें अनुष्का की पूरी सहायता करेगा | "अरे पढाई का शादी से क्या लेना देना, पढाई अपनी जगह है तुम भी आगे बढ़ो दुनिया को देखो " कह कर अपना तालिया उठा कर नहाने चला गया  | आखिर गौतम जब रोज रोज यही दोहराने लगा तो थक हार कर अनुष्का ने गौतम की बात मान ली और बी.ए फर्स्ट ईयर में एड्मिशन ले लिया |

क्या यही एक भूल हो गयी थी उस से ,गौतम फिर से उस लटकते घूमते पंखे को देख रहा था और सोच रहा था ,उसने तो वहीं किया जो की किसी भी अच्छे इंसान को और अच्छे पति को करना चाहिए था तभी दरवाजे की घंटी बजी ,मन नहीं था खोलने का सो थोड़ी देर वैसे ही लेटा रहा, घंटी फिर बज उठी इस बार दो बार बजी, दरवाजा खोला "नट्टू तू" करीब एक ग्यारह  का बच्चा हाथ में चाय लिए खड़ा था कहने लगा "ओह्ह क्या भैया इतनी देर से घंटी दे रहा हूँ अपनी चाय ले लो " चाय लेकर गौतम वापिस कमरे में आया और पास पड़ी कुर्सी पर बैठ गया जो किताबों के टेबल के पास थी जिस पर वो सुबह होते ही वो बैठ जाया करता था और जहां अनुष्का और गौतम साथ साथ चाय की चुस्कियां भरते हुए अपनी सुबह को तरोताजा करते थे | कितना खूबसूरत मंजर होता था और कितना अजीब है अब सब कुछ, चाय की पहली चुस्की भरते सोचने लगा कहां तो अनुष्का बाहर खाना खाने के लिए भी मना करती थी हमेशा कहती थी घर का बना खाना खाने से अच्छा कुछ भी नहीं और अब तो.. एक लम्बी आह भरी जैसे गौतम का अंदर का हर दर्द अपने आप को सिर्फ आहों में ही बयां कर रहा हो | 
    अनुष्का पढ़ने में बहुत तेज थी इस बात में गौतम कोई शक नहीं था वो अनुष्का के इस बात से बेहद प्रभावित भी था, उसका मनपसंद सब्जेक्ट जियोग्राफी था , धीरे धीरे दोनों की दिनचर्या 
फिक्स हो गयी गौतम यूनिवर्सिटी जाता और अनुष्का कॉलेज | गौतम ने परीक्षा के दिनों में अनुष्का की पूरी मदद की और समय कैसे बीत गया पता ही नहीं चला ,अनुष्का ने ग्रेजुएशन फर्स्ट डिवीज़न से पास किया और गौतम के कहने पर जियोग्राफी में एम.ए करने का निश्चय किया, अपना मन पसंद विषय पाकर अनुष्का फूली न समायी  | अब कुछ दिनों के लिए वो बुआ के घर जाना चाहती थी बहुत जिद्द करने पर गौतम ने उसे बुआ के यहां छोड़ दिया ,अलका भी अनुष्का को देख कर बेहद खुश थी आखिर बुआ का उसके सिवा अपना था ही कौन ? अलका ने पाया कि अनुष्का बहुत ज्यादा खुश है और चहक भी रही है ये बात तो अच्छी थी मगर एक चिंता ने अलका के मन को घेर लिया , उसकी रूचि गौतम से ज्यादा अब कॉलेज जाने में थी, अनुष्का कॉलेज की सारी बातें अलका को बताती अपनी सहेलियों के बारे में दोस्तों के बारे में | उसने अलका को अपनी एक खास दोस्त नेहा के बारे में बताया कि कैसे वो अपनी गाड़ी लेकर कॉलेज आती है ,और कहने लगी 
"बुआ वो बहुत अमीर घर से है उसके घर में सारे के सारे लोग बड़ी बड़ी पोस्ट पर हैं"  अलका ने उसकी सब बहुत ध्यान से सब बातें सुनी वो अनुष्का को लेकर एक बात समझ रही थी उसकी उम्र के हिसाब से वो अपनी जगह ठीक है मगर कुछ पाने का सपना अभी भी वो आंखों में लिए घूम रही है क्या था वो सपना ? क्या वो सपना अनुष्का और गौतम दोनों का है या सिर्फ और सिर्फ अनुष्का का ? इन सवालों से अलका सिहर उठी वो ये भली प्रकार जानती थी कि गौतम उस से बेहद प्यार करता है इसी लिए अनुष्का की ख़ुशी में वो अपनी ख़ुशी ढूंढता है ,इसलिए वो अनुष्का की हर बात मान भी लेता है आखिर प्यार यही तो है एक दूसरे को समझना और एक दूसरे की ख़ुशी में खुश रहना | अलका ने कई बार बातों का रुख मोड़ने की कोशिश की और गौतम के बारे में और आगे परिवार बढ़ने केर बारे में अनुष्का से जानना चाहा मगर अनुष्का हर बार एक फीकी मुस्कराहट देकर बात टाल जाती और हर बार यही कहती  "बुआ तुम भी न, अभी मेरी उम्र ही क्या है, अभी मैं पढ़ना चाहती हूँ कुछ बनना चाहती हूँ और खूब पैसा कमाना चाहती हूँ " पढ़ने वाली बात ठीक थी मगर पैसे वाली बात अलका को चिंता में डालने के लिए काफी थी | कुछ दिन रह कर वो वापिस गौतम के पास लौट आई गौतम बेहद खुश था क्यों कि अनुष्का के बगैर पूरा घर सूना सूना लग रहा था |
साल दर साल फिर बीतते गए और पढाई का सिलसिला आगे चलता रहा ,एम.फिल करने के दौरान अनुष्का को एक प्राइवेट कॉलेज में नौकरी मिल गयी ,अनुष्का के पंखों को तो जैसे नयी  उड़ान मिल गयी थी | बेहद खुश थी अनुष्का इस नौकरी के मिलने से मगर एक छोटी सी परेशानी थी वो ये की उसका कॉलेज दूसरे शहर में था | इस परेशानी का हल भी गौतम ने ही निकाला ,उसने अनुष्का से कहा कि वो वहां जाना चाहे तो जा सकती है अगर नौकरी नहीं भी करना चाहती है तो वो भी ठीक है ,मगर अनुष्का जाना चाहती थी वो हरगिज़ भी इस नौकरी को ठुकराना नहीं चाहती थी, इसलिए जाने का निश्चय किया, मगर अकेले रहने में उसे थोड़ा डर लग रहा था इसलिए गौतम ने ढांढस बंधाया कि वो हर शनिवार उसके पास आ जाया करेगा सप्ताह में दो दिन वो साथ बिताएंगे फिर अनुष्का नौकरी के लिए दूसरे शहर चली गयी | 
यही वो मोड़ था जहां से गौतम और अनुष्का के रास्ते अलग अलग होने शुरू हुए ,एक कहावत भी है कि नजरों से दूर तो दिल से दूर वो यहां चरितार्थ होती दिख रही थी | गौतम तो अपने काम में व्यस्त हो गया मगर अनुष्का के लिए हर बात नयी थी नयी नौकरी, नया कॉलेज नए दोस्त और सबसे ज्यादा उसके नए सपने ,उसका मिलनसार और चंचल स्वभाव सभी को आकर्षित करता था कुछ ही समय में वो कॉलेज की प्रिय लेक्चरर बन गयी | इसी दौरान उसकी दोस्ती मीरा से हुई जो हिंदी की लेक्चरर थी ,दोनों जल्दी ही अच्छी सहेलियां बन गयी मीरा तलाकशुदा थी इसलिए वो भी अकेली ही रहती थी आजाद ख्याल की मीरा ने जैसे अनुष्का का दिल जीत लिया था मीरा अपनी कार से कॉलेज जाती थी , जब से दोनों अच्छी सहेलियां बनी थी दोनों का उठना बैठना आना जाना इकट्ठा था | अभी अनुष्का को आये तीन महीने हो चले थे अचानक से एक दिन उसकी तबियत खराब हुई तो कॉलेज से छुट्टी ले कर घर जल्दी आ गयी ,दो दिन तक अजीब सी तबियत रहने के वाबजूद उसने डॉक्टर को दिखाया तो पता चला अनुष्का गर्भ से है ,अनुष्का पर तो जैसे कोई बज्रपात हुआ समझ नहीं आ रहा था की वो क्या करे वो गौतम को ये बात बताये या नहीं, उसने ये बात मीरा को कही और साथ में ये भी बताया वो अभी माँ नहीं बनना चाहती मीरा ने प्रतिउत्तर में यही कहा कि वो अपने फैसले खुद ले सकती है अगर वो नहीं चाहती तो वो गर्भ गिरा दे, मीरा की गर्भ गिराने वाली बात सुन कार अनुष्का अंदर तक कांप गयी उसने फ़ौरन ये बात गौतम को बताने का निश्चय किया और उसने यही सोचा कि वो गौतम से कुछ नहीं छिपायेगी वो जानती थी गौतम उसकी हर बात मान जाता है इस बार भी वो उसे समझेगा और मान लेगा | उस दिन शनिवार था गौतम करीब तीन बजे तक पहुंच गया अनुष्का की अजीब सी हालत देखकर वो कुछ परेशान हुआ और उसकी हालत का कारण पूछा अनुष्का ने पहले तो यही कहा की तबियत कुछ ठीक नहीं मगर गौतम ने डॉक्टर के पास जाने की बात कहीं तो अनुष्का से रहा नहीं गया और कहा  "गौतम मैं अभी बच्चा नहीं चाहती "और गहरे संतोष भरे भाव से गौतम को देखने लगी पहले तो गौतम कहने का मतलब समझा नहीं जब अनुष्का ने फिर से कहा की वो डॉक्टर के पास गयी थी तो पता चला की वो गर्भ से है मगर वो अभी बच्चा नहीं चाहती | गौतम पहले तो बेहद खुश हुआ मगर जल्दी ही वो अनुष्का कि कहीं गयी बात से कुछ आक्रोश से भर गया मगर फिर भी खुद को सहज करते हुए एक समझदार इंसान की भांति अनुष्का को समझने की कोशिश की और कहा "अनुष्का हमारी शादी को सात साल होने को आ गए अब तो तुम्हारी पढाई भी पूरी हो गयी है अच्छी खासी नौकरी भी है फिर अब तो हम अपने परिवार के बारे में सोच  सकते हैं" मगर अनुष्का गौतम की सारी बातों को अनसुना कर रही थी जैसे उसने फैसला ले लिया हो | रात को खाने के बाद दोनों बालकनी में खड़े हो गए मगर खामोश, इस बार जैसे दोनों को ही एक अजनबीपन का एहसास हो रहा था गौतम नहीं समझ पा रहा था की वो उसे कैसे समझाए न ही अनुष्का ये बात समझ पा रही थी | दोनों जान चुके थे की दूरियां तो आ गयी हैं मगर इन दूरियों का जिम्मेवार कौन है वो  या अनुष्का , मगर गौतम अभी भी अनुष्का को दिलोजान से चाहता था वो चाहता था की अनुष्का वापिस अपने शहर आ जाये लेकिन वो उसे मजबूर नहीं करना चाहता था |

अचानक फिर से घंटी बजी, गौतम की शून्यता टूटी मगर इस बार घंटी फ़ोन की थी ,घंटी लगातार बज रही थी और उसकी गूंज कमरे में पसरी ख़ामोशी और गौतम के दिल में बसी ख़ामोशी दोनों में खलल डाल रही थी , उसने चाय का गिलास टेबल पर रखा और रिसीवर उठाया और भरी आवाज में कहा  "हेलो" दूसरी तरफ आवाज किसी औरत की थी कुछ जानी पहचानी ,दूसरी तरफ से फिर आवाज आई "हेलो, हेलो, कौन? गौतम, मैं अलका  बोल रही हूँ " थोड़ा विस्मय भरे अंदाज में गौतम ने कहा "अरे बुआ आप, आप कैसी हैं?" अलका की आवाज फिर आई " मैं अच्छी हूँ बहुत दिन हो गए थे तुमसे बात किये आजकल यूनिवर्सिटी भी नहीं आ रहे हो, किसी ने बताया तुमने छुट्टी ले रखी है इसलिए सोचा फ़ोन कर के पूछ लूं कहीं तबियत खराब तो नहीं ?" गौतम हंसने लगा "नहीं बुआ ऐसी कोई बात नहीं मैं ठीक हूँ " अलका कुछ कहना चाह रही थी मगर हिम्मत नहीं हो रही थी बस इतना ही कहा " गौतम मैं तुम्हें और तुम्हारे हालातों को समझ सकती हूँ बस दुःख तो इस बात का है कि कुछ कर नहीं सकती जो भी हुआ बेहद बुरा हुआ " गौतम कुछ सकते में आ गया वो शायद इस बात के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं था और आगे कुछ सुनना नहीं चाहता था अलका की बात काट कर बस इतना ही कहा "बुआ जी आप मेरी चिंता न कीजिये अभी कुछ काम है मैं आपसे बाद में बात करता हूँ" और रिसीवर रख दिया | रिसीवर के रखते ही गौतम ज्यादा परेशान हुआ उसने बड़ी अपनी बढ़ी हुई दाढ़ी पर हाथ फेरा और धड़ाम से पलंग पर आ गिरा और फिर वहीं सब बातें सोचने लगा, कैसे ये सब हो गया ये तो उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि अनुष्का इतनी बेरुखी से उसे ठुकरा कर चली जाएगी आखिर उसके प्यार में क्या कमी रह गयी थी ? अनुष्का अब एक प्रोफेसर बन चुकी थी क्या यही वजह थी ? या गौतम का कलर्क होना अब उसे अखरने लगा था आखिर अनुष्का ने ऐसा क्यों किया ? ये सब सवाल एक बड़ी पहेली बन गए थे गौतम के लिए | वो झट से उठा और टेबल पर पड़ी डायरी के बीच रखे उस अनुष्का के खत को अपने कांपते हाथों से निकाला और इन सारे सवालों के जवाब ढूंढने के लिए एक बार फिर पढ़ने लगा वो जानता था कि जब से उसे  अनुष्का का खत उसे मिला है वो कितनी बार उसे पढ़ चुका है ..
करीब एक महीना पहले उस दिन गौतम यूनिवर्सिटी से लौटा ही था कि लैटरबॉक्स में खत मिला , ना जाने किसका था समझ नहीं पा रहा था वो अंदर आकर आराम कुर्सी पर बैठ गया थोड़ा सुस्ताने लगा फिर उस खत को खोला तो सबसे ऊपर अपना नाम पढ़ा, फिर ..क्या था धीरे धीरे उसे उसकी जिंदगी उससे दूर जाती दिखी ,जैसे जैसे वो उस खत को पढ़ रहा था उसे सब कुछ ख़त्म होता दिखाई दे रहा था...

प्रिय गौतम
 मैं इस खत को लिखने के लिए बहुत मजबूर हूं मैं जानती हूं इसे पढ़ कर तुम्हें बेहद दुःख होगा मुझे इसके लिए माफ़ कर देना मगर मुझे ये लिखना बेहद जरुरी लग रहा है , समय रहते ही मैं आपको सारी बातें कहना चाहती हूं मैं नहीं चाहती कि बाद में हम दोनों को कोई पछतावा महसूस हो | गौतम हमारी शादी को सात साल हो गए और एक दूसरे को समझने के लिए ये काफी होते हैं , मैं जानती हूं आप मुझे अच्छे से समझते हैं इसलिए इस खत में लिखी मेरी हर बात को आप समझोगे, मैं क्या सोचती हूं उसको भी | गौतम जब आप से मेरी शादी हुई तब मैं बेहद छोटी थी सिर्फ अठारह बरस की,उस वक्त मैं कितनी अल्हड और नादान थी आज मुझे लगता है , मैं उस वक्त नहीं जानती थी कि जिंदगी क्या है ,जीना किसे कहते हैं, मैं उस वक्त पढ़ना चाहती थी आगे बढ़ना चाहती थी कि अचानक से आप मेरी जिंदगी में आ गए, आप मुझसे प्यार करते थे इसलिए मुझे भी आप से प्यार हो गया ,मगर मेरा वो प्यार शायद मेरा बचपना था आप ही सोचिये गौतम उस उम्र में तो शायद कोई भी लड़की बहक जाये क्यों कि वो उम्र ही ऐसी होती है | आज मैं परिपक्व अवस्था में हूं जीवन के बारे में खुद के बारे में सोच सकती हूं, मैं अपनी जिंदगी को अपने तरीके से जीना चाहती हूं जिंदगी को नए आयाम देना चाहती हूं,जीवन में अपने लक्षय को प्राप्त करना चाहती हूं ,इस लिए मैं ज्यादा ना लिखते हुए यही बात स्पष्ट कहना चाहती हूं कि मैं आपसे अलग होना चाहती हूं और कानूनी तौर पर आपसे तलाक लेना चाहती हूं | ये मेरी निजी राय है और इच्छा भी, आशा है आप मेरे इस फैसले का सम्मान करोगे और मुझे समझेंगे | आप अपने जीवन में हमेशा खुश रहिये इन्हीं शुभकामनाओं के साथ 
अनुष्का 
  
दोनों के कानूनी तौर पर अलग हो जाने के तक़रीबन साल भर बाद खबर आई कि अनुष्का ने शहर के एक जाने माने उद्योगपति रवीश वर्मा से शादी कर ली और हमेशा के लिए अमेरिका चली गयी, लेकिन गौतम का कोई पता नहीं था उसको लेकर भी कई तरह की बातें सामने आई ,कोई कहता कि मानसिक संतुलन खो बैठा है ...कोई कहता कि वो अपने गावं वापिस चला 
गया | 

3 comments:

  1. रोचक कहानी...बेमेल शादियों का शायद यही हश्र होता है..

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  2. प्यार का उथलापन जल्दी सबके सामने आ जाता है
    बहुत बढ़िया कथा प्रस्तुति

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  3. काफी उम्दा कहानी ..आजकल के रोमांस का एक ऐसा भी सच है !

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मैं देख रही थी...

                                              मैं देख रही थी   गहरी घाटियां सुन्दर झरने   फल फूल ताला...