हाल ही में उजड़े हैं कुछ लोग
हर बार उजड़ते हैं
कितने ही कारणों से
पानी से
मिटटी से
आग से
हवा से
और मैं देखती हूं
उन्हें उजड़ते हुए
जीवन से मौत में तब्दील होते
अचरज होता है
जहाँ जीवन है वही मौत है
यही सब मेरे आसपास है
मेरे जीवन के स्रोत भी यही हैं
आग हवा मिटटी और पानी है
एक वृत्त बना है मेरे चारों तरफ
इस पर विश्वास करना बेहद मुश्किल है
कि ये उजड़ापन कभी न कभी मुझ तक भी पहुंचेगा
जो आदि है वही अंत है
हरेक को वहीं पहुंचना है जहाँ से वह आया है...देर सबेर..
ReplyDeleteसच में जहाँ आदि है वहां अंत भी अवश्य होगा
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