Tuesday 13 August 2013

कम होता न ये धुंआ है





देश हमको बता रहा है या हम देश को बता रहे हैं 
जाने किस डगर किस राह हम जा रहे हैं 
बस इतनी सी बात है कम होता ये धुंआ है 
आगे खाई पीछे कुआं है 
संस्कारो की कोई बात नहीं होती 
नैतिकता मुहं ओंधे किये है सोती 
शब्द झूठे लगते हैं सच्चाई के  
बोल कडवे लगते हैं अच्छाई के 
नेकी का नामोनिशान नजर नहीं आता 
पाप का गागर भर कर छलक जाता 
भ्रष्ट लोगों को देख भ्रष्टाचार को भी है शर्म आती 
सारा देश ऐसे लिप्त है जैसे दल दल में हाथी
बलात्कार के किस्से जो हेड लाइन बन कर जो छाते 
देखकर आदमी क्या अखबार भी दंग रह जाते 
खुनी खेल को अंजाम ऐसे दिया जाता है 
जैसे रोजमर्रा का कोई काम किया जाता है 
कानून अपना अँधा है इसलिए न्याय नहीं हो पाता 
पन्द्रह सौ के मुचलके पर अपराधी छूट जाता 
मांग किसी की उजड़े या उजड़े किसी का घर 
उसको प्रशासन का खौफ है पुलिस का है डर 
पुलिस ऐसी जिसका रौब सिर्फ गरीब झौपडपट्टी 
या रिक्शावालों पर चलता है 
बड़े लोगों नेताओं आला अफसरों के एक इशारे पर 
सिंहासन उसका भी हिलता है 
दहेज़ पर बात आये तो ये किस्सा बहुत पुराना है 
सब सोचते हैं कल की आई नयी बहु को कब जलाना है 
घर भर के ताने सुन आंसुओं  की नदी बहती है 
अस्पताल में छटपटाते हुए अंतिम बिदाई लेती है 
नेता हमारे अपने हाथ नहीं आते एक एक कर घोटालों में फसते जाते 
किसी पर हत्या का केस दर्ज है 
किसी पर मुकद्दमा चल रहा बलात्कार का 
सोचने की बात ये है किसने इन्हें बोट दिया 
किसने अंग बनने दिया सरकार का 
ये आरोप इतने संगीन इतने गहरे है 
हैरान होकर देखते गूंगे बहरे हैं 
सौंधी मिटटी की खुशबू कीचड़ में बदल रही है 
समाज की सड़ी गली गन्दगी हवा में घुल रही है 
सरकार हमारी गहरी नींद में है  सोती 
अपनी कुर्सी छीन जाने का रोना रोती
लूटपाट का ,मक्कारी का जालसाजी का 
चल रहा जंगल राज है 
अंगारों पर देश है बैठा जल रहे हैं सब
फैल रही आग ही आग है 
कोई दिन ऐसा भी आये हम फक्र करें किसी बात पर 
फक्र करने की वो बात भी होगी 
वर्तमान के इन काले पन्नों में
भविष्य का कोई ऐसा पन्ना भी होगा 
जिस पर वो सुनहरी तारीख भी होगी  

              "जय हिन्द" 


11 comments:

  1. बहुत बेहतरीन लिखा है आपने मंजूषा जी
    एक एक बात सार्थक और सामायिक।

    वाकई में आज देश की किसी को भी नहीं पड़ी है,
    सब अपने मतलब में मस्त हैं,
    सिर्फ़ जय हिन्द करने से अब कुछ नहीं होने वाला,
    अब तो तिरंगा ओढ़ के, और उसके दंडे को इस्तेमाल में लेन की नौबत आन पड़ी है। .
    अब भी अगर हम सब न चेते तो देश फिर गुलामी की चपेट में आ जायेगा।
    जय हिन्द

    ReplyDelete
  2. बहुत सही लिखा आपने देश के हालत बहुत ही जर्जर हैं ....समसामयिक बढ़िया प्रस्तुति ..

    ReplyDelete
  3. समसामयिक बहुत ही सुन्दर भाव अभिव्यक्ति...बधाई

    ReplyDelete
  4. भविष्य के इसी पन्ने की तलाश है अब तो .... और ये पाना सबको मिल के ही लगाना होगा इस किताब में ... सामयिक रचना ...

    ReplyDelete
  5. हार्दिक आभार... अरुण जी ..मेरी रचना को स्थान देने के लिए

    ReplyDelete
  6. बहुत ही बढ़िया

    स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभ कामनाएँ!

    सादर

    ReplyDelete
  7. सुन्दर अभिव्यक्ति.

    ReplyDelete
  8. बहुत मार्मिक चित्रण किया है ,आपने हर सच्चाई का, ढेरो शुभकामनाये

    ReplyDelete
  9. सार्थक भाव अभिव्यक्ति...

    ReplyDelete
  10. वर्तमान में देश की भ्रष्ट और त्रस्त स्थिति पर जोरदार प्रहार करती आपकी यह रचना सार्थक है ...

    ReplyDelete
  11. चिंतन योग्य सामायिक रचना ..
    आभार आपका !

    ReplyDelete

मैं देख रही थी...

                                              मैं देख रही थी   गहरी घाटियां सुन्दर झरने   फल फूल ताला...