मर्यादा के वृत्त में खड़ा कर औरत
सदियों से जिंदगी को जबरन ढोती
आज की सीता है तुमसे पूछ रही
क्यों पुरुषों की लक्ष्मण रेखा नहीं होती
फूल दूसरों के बिछौने में बिछा खुद
काँटों की सेज पर चारों पहर सोती
अयाशियों के दल दल से बाहर निकाल
अश्रुओं से पति का मैला दामन धोती
हर अंग जकड़ा हुआ है बेड़ियों में
समझती जैसे उन्हें बसरा का मोती
हर बार जीतते जीतते जंग हार जाती
दर्द के समंदर में अपने अरमान डुबोती
ढलती साँझ में उम्मीद की लौ जला कर
उसकी रौशनी में सब आशाएं खोती
बरसों की दहलीज पर जमी मिटटी को
गमले में रख अपने सपनों के बीज बोती
अपने कर्तव्यों का दायित्व निभाते हुए कब
एक आंख हस देती एक आंख उसकी रोती
purushon ki laksham rekha :)
ReplyDeletesundar shabd chitran...
आपके ब्लॉग को ब्लॉग - चिठ्ठा में शामिल किया गया है, एक बार अवश्य पधारें। सादर …. आभार।।
ReplyDeleteनई चिठ्ठी : चिठ्ठाकार वार्ता - 1 : लिखने से पढ़ने में रुचि बढ़ी है, घटनाओं को देखने का दृष्टिकोण वृहद हुआ है - प्रवीण पाण्डेय
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हार्दिक आभार..आपका
Deleteबरसों की दलहिज पर जमीं मिटटी को
ReplyDeleteगमलों में रखकर अपने सपनों के बीज बोती
बिल्कुल सही.... बहुत खुबसूरत रचना ....
रसों की दलहिज पर जमीं मिटटी को
ReplyDeleteगमलों में रखकर अपने सपनों के बीज बोती
.... बहुत खुबसूरत रचना !
आपकी इस प्रस्तुति को आज की बुलेटिन गणेश शंकर विद्यार्थी और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। सादर .... आभार।।
ReplyDeleteहार्दिक आभार हर्षवर्धन जी..आपका इस सम्मान हेतु
Deleteनमस्कार आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (27-10-2013) के चर्चामंच - 1411 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
ReplyDeleteहार्दिक आभार अरुण जी..आपका इस सम्मान हेतु
Deleteनारी जीवन का सुन्दर चित्रण |
ReplyDeleteनई पोस्ट सपना और मैं (नायिका )
कमाल की रचना है , बार बार पढने योग्य , बधाई !
ReplyDeleteहार्दिक आभार सतीश जी जी..आपका इस सम्मान हेतु
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति
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अदभुत , सुंदर, लेखनी का जादू , शुभकामनाये मंजूषा जी
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteसादर
एक बेहतरीन कृति / बहुत ही सुन्दर रचना
ReplyDeleteअल्फ़ाज़ साथ नहीं दे रहे तारीफ़ करने में , सिर्फ और सिर्फ बहुत ख़ूब ही कह पा रहा हूँ।
बहुत बहुत बधाई
आपकी इस अभिव्यक्ति की चर्चा कल रविवार (13-04-2014) को ''जागरूक हैं, फिर इतना ज़ुल्म क्यों ?'' (चर्चा मंच-1581) पर भी होगी!
ReplyDelete--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर…
हार्दिक आभार ..अभिषेक जी..इस सम्मान हेतु
Deleteनारी जीवन की व्यथा कथा को बड़ी सशक्त अभिव्यक्ति दी है आपने ! अत्यंत प्रभावशाली रचना !
ReplyDeletenari jiwan ki kahaani yahi hai .. sundar prastuti badhayi shubhkamnaye :)
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