Friday, 22 June 2018
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
-
म र्यादा के वृत्त में खड़ा कर औरत सदियों से जिंदगी को जबरन ढोती आज की सीता है तुमसे पूछ रही क्यों ...
-
मर्यादा में बंधी औरत जीती है अपने अरमानों में जलाती सपनों की गीली लकड़ियां दबाती राख के मैदानों में ...
-
युगों ने बदला ब्रह्माण्ड का स्वरूप सदियों ने तय किया इंसान का रूप परन्तु मैं वहीं हूँ जहां कालांतर में ...
नदी भी तो प्राकृति का अंग है ...
ReplyDeleteसंवेदनशील होना कहीं न कहीं नारी हो जाना ही है ...
लाजवाब रचना ...
नदी स्त्री ही तो है जो अपने समुन्दर में समा जाती है
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
आपको जन्मदिन की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं
दीपोत्सव की अनंत मंगलकामनाएं !!
ReplyDeleteBest chance to convert your writing in book form publish your content book form with bestbook publisher in India with print on demand services high royalty, check our details publishng cost in India
ReplyDelete