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म र्यादा के वृत्त में खड़ा कर औरत सदियों से जिंदगी को जबरन ढोती आज की सीता है तुमसे पूछ रही क्यों ...
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युगों ने बदला ब्रह्माण्ड का स्वरूप सदियों ने तय किया इंसान का रूप परन्तु मैं वहीं हूँ जहां कालांतर में ...
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मर्यादा में बंधी औरत जीती है अपने अरमानों में जलाती सपनों की गीली लकड़ियां दबाती राख के मैदानों में ...