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मैं देख रही थी...
मैं देख रही थी गहरी घाटियां सुन्दर झरने फल फूल ताला...
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मर्यादा में बंधी औरत जीती है अपने अरमानों में जलाती सपनों की गीली लकड़ियां दबाती राख के मैदानों में ...
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युगों ने बदला ब्रह्माण्ड का स्वरूप सदियों ने तय किया इंसान का रूप परन्तु मैं वहीं हूँ जहां कालांतर में ...