Sunday 16 June 2013

यूँ आया अबके सावन.....



   


ये चंचल मन 
मयूर गया बन 
कहीं दूर गगन 
शोर करें घन 
प्यासा है उपवन 
बूंदें बरसी छमछम
गए उसमें सब रम
धरती जो हुई नम
भिन्नी खुशबू गयी बन 
थी बढ़ती जो तपन
हलकी हुई वो जलन
चली जो मंद पवन 
गीला हुआ सारा चमन
भीगा मेरा भी तन
 सांसें हुई मगन
 बारिश का हुआ आगमन
करूं कोई गम
नहीं था वो मौसम
नंगे पावं दौड़ते हम
उड़ चले पंछी बन
सराबोर है कण कण 
झूमती पत्तियां सन सन 
कहीं जाये न थम
हो जाये न गुम
कारे बदरा लगे मनभावन
हुए इतने पावन
एक त्यौहार बन 
यूँ आया अबके सावन 


2 comments:

  1. अभिव्यक्ति का यह अंदाज निराला है. आनंद आया पढ़कर.

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  2. बहुत सुंदर रचना

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